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Friday, 23 December 2011

अमावास सी हर रात क्यों

गम तुम्हारा हम तुम्हारे. तुम्हारी ही हर बात क्यों.
हमारे  ही  मुकद्दर  में   हिज्र  की  ये  रात  क्यों.
एक जमाना वो भी था, चाँद मिलता था थाल में.
चल पड़ी कैसी हवाएं,अमावास सी हर रात क्यों.
भूल जाना ही मुनासिब है, शायद तुझे ऐ जिंदगी.
फैसला तो कर लूँ कुछ, पर बिखरे हैं ख़यालात क्यों.






Thursday, 22 September 2011

दिल हुआ है ख्वाहिशों की एक किताब ,
बढ़  रहे है  बरक़  जिसके  बेहिसाब .
कर सकूँ  महसूस  तुझको  जिंदगी,
हाथों में हो हाथ   मेरा इतना ख्वाब.
बात दिल की आज कह दूँ साकी तुझसे,
अब पिला आँखों से बस अपनी शराब.
तेरे  सदके  में   मिटा  मेरा  वजूद,
मै  हुआ  जर्रा  हुई  तू   माहताब.

Tuesday, 24 May 2011

ख्वाहिशें

दिल हुआ है ख्वाहिशों की एक किताब ,
बढ़  रहे है  बरक़  जिसके  बेहिसाब .
कर सकूँ  महसूस  तुझको  जिंदगी,
हाथों में हो हाथ   मेरा इतना ख्वाब.
बात दिल की आज कह दूँ साकी तुझसे,
अब पिला आँखों से बस अपनी शराब.
तेरे  सदके  में   मिटा  मेरा  वजूद,
मै  हुआ  जर्रा  हुई  तू   माहताब.